चीन और भारत के बीच चल रहे डोकलाम विवाद पर अमेरिका लगातार नजर बनाए हुए है. शीर्ष अमेरिकी चीनी विशेषज्ञ बोनी ग्लेसर ने कहा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की राय में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐसे नेता हैं जो भारतीय हितों के लिए खड़े होते हैं. उन्होंने कहा कि जिनपिंग को लगता है कि मोदी इसके लिए चीन को रोकने वाले देशों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं. शायद जिनपिंग इसी बात से चिंतित हैं.
Center for Strategic and International Studies (CSIS) की बोनी एस ग्लेसर ने कहा कि चीन को रोकने के लिए मोदी अन्य देशों के साथ काम करने के इच्छुक हैं, इन देशों में अमेरिका और जापान अहम हैं. उन्होंने कहा कि भारत के साथ लगातार बिगड़ रहे संबंध में चीन को कोई फायदा होते नहीं दिख रहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले जब शी जिनपिंग दिल्ली गए थे, तो उन्हें लगा था कि पीएम मोदी की नीति चीन विरोधी नहीं होंगी. लेकिन यह जिनपिंग के लिए कारगर नहीं रहा, भारत लगातार चीन के विरोध में दिखा जिसका उदाहरण दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे में भी दिखा. ग्लेसर 1997 में चीन पर रक्षा विभाग की विशेष समिति की सदस्य रही हैं.
उन्होंने कहा कि चीन भारत को एक बड़ी चिंता मानता है, जो लंबे समय में खतरा हो सकती है. हालांकि उनका मानना है कि हाल की समय में बड़ी चिंता यह है कि भारत दूसरे देशों के साथ आ रहा है, जिससे वह एशिया में चीन के महाशक्ति बनने में दीवार बन रहा है. उन्होंने लिखा कि चीन भारत को रक्षात्मक तौर पर तो कोई खतरा नहीं मानता है पर राजनीतिक तौर पर वह बड़ा खतरा है.
बता दें कि चीन के साथ सिक्किम क्षेत्र में सैन्य गतिरोध को तकरीबन एक महीने से अधिक हो गया है. इस बीच बीजेपी सरकार के तीन मंत्री भी चीन गए थे, लेकिन सैन्य गतिरोध पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने के नाते डोभाल के हाथ में सुरक्षा संबंधी फैसला लेने का अधिकार है. हाल ही डोभाल भी चीन गए थे, वहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी संसद में बयान दिया था, उन्होंने कहा था कि भारत चीन के साथ विवाद को बातचीत से सुलझाना चाहता है.
Center for Strategic and International Studies (CSIS) की बोनी एस ग्लेसर ने कहा कि चीन को रोकने के लिए मोदी अन्य देशों के साथ काम करने के इच्छुक हैं, इन देशों में अमेरिका और जापान अहम हैं. उन्होंने कहा कि भारत के साथ लगातार बिगड़ रहे संबंध में चीन को कोई फायदा होते नहीं दिख रहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले जब शी जिनपिंग दिल्ली गए थे, तो उन्हें लगा था कि पीएम मोदी की नीति चीन विरोधी नहीं होंगी. लेकिन यह जिनपिंग के लिए कारगर नहीं रहा, भारत लगातार चीन के विरोध में दिखा जिसका उदाहरण दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे में भी दिखा. ग्लेसर 1997 में चीन पर रक्षा विभाग की विशेष समिति की सदस्य रही हैं.
उन्होंने कहा कि चीन भारत को एक बड़ी चिंता मानता है, जो लंबे समय में खतरा हो सकती है. हालांकि उनका मानना है कि हाल की समय में बड़ी चिंता यह है कि भारत दूसरे देशों के साथ आ रहा है, जिससे वह एशिया में चीन के महाशक्ति बनने में दीवार बन रहा है. उन्होंने लिखा कि चीन भारत को रक्षात्मक तौर पर तो कोई खतरा नहीं मानता है पर राजनीतिक तौर पर वह बड़ा खतरा है.
बता दें कि चीन के साथ सिक्किम क्षेत्र में सैन्य गतिरोध को तकरीबन एक महीने से अधिक हो गया है. इस बीच बीजेपी सरकार के तीन मंत्री भी चीन गए थे, लेकिन सैन्य गतिरोध पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने के नाते डोभाल के हाथ में सुरक्षा संबंधी फैसला लेने का अधिकार है. हाल ही डोभाल भी चीन गए थे, वहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी संसद में बयान दिया था, उन्होंने कहा था कि भारत चीन के साथ विवाद को बातचीत से सुलझाना चाहता है.
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